क्हावतें और बुझइयॉ _ KahaWat Chhattisgarhi and Hiindi


भात खोये बर करछुल नहीं, फेक मार तरवार 

पकते हुए चावल को खाने के लिए चम्मच नहीं है और तलवार से मारो कह रहे हो - अर्थात् साधारण औजार नहीं है तो तलवार कहां से पाओगें?
बाप मारे, पूत साखी दे

अर्थात् बाप को पीटा इसकी गवाही पुत्र देगा। सार यह कि उसने पीटा मुझे और अपने बचाव के लिए मेरी ही पुत्र को गवाह बनाया।
घर में भूंजे भाग नहीं, पछोत में मेछा मेड़े (मेरै)

अर्थात् धाव में लगने को तेल नहीं है पर घुड़साल के लिए दिया कहां से आयेगा। सारांश यह कि स्वयं के लिए कुछ नहीं है पर झूठी प्रतिष्ठा के घुड़साल में दिया जलायेगा।
मुंडली महतारी लोढ़वा के लटकन

अर्थात मॉ मुन्डी हे (बिना केस के) पर कान मैं बड़ा से लटकता हुआ गहना। अर्थात अशोभनीय कार्य।
अहिर, गड़रिया, पानी, तीनों सत्यानासा

अर्थात् ग्वाला, गड़रिया, और तांडी या दारू बेचने वाले तीनों ही बर्बादी के लक्षणा हैं - सारांश इसने बचो।
कतको अहिरा पिंगला पढे, बारा भूत के चाल चले

अर्थात् अहिर या ग्वाला कितना भी पढ़ ले पर वे भ्रांतियों पर ही चलेंगें। सारांश - चाहे कितना भी बदलाव लावें पर पुरानी आदतें। छूटती नहीं है।
सारांश - चाहे कितना भी बदलाव लावें पर पुरानी आदतें छूटती नहीं है।
नाव मोती चंद, झलक बिनौरा के नहीं

अर्थात् नाम तो शेर सिंग जैसे है, पर उठने की ताकत नहीं है।
नांव जबर सिंग, उठे भूं टेक

अर्थात नाम तो शेर सिंग जैसे है, पर उठने की ताकत नहीं है।
पाठ पूजा जैसे तैसे, बिंन चोंगी के बम्हना कैसे

ब्राम्हण कितना भी पूजा पाठ करे, पर उसका चोंगी (चुरूट की तरह का तंबाखु पीने का) तो चलेगा ही।
बाप अन्यायी पूत कुन्यायी, ए मॉ के कसर ओमॉ आई

अर्थात् पिता अन्यायी, पुत्र कुकर्मी, दोनों का असर देनों में आयेगा ही, अर्थात बाप बेटे के अवगुण एक दूसरे में आ ही जाते है।
मारिहौं खाड़ा मूड हींट जाय, खॉडा कहां है ददा के ससुराल मॉ

तलवार से मारूगा तो सिर कट कर गिर जायेगा पर तलवार को पिता के ससुराल में है - सारांश कोरी धमकियां। (अर्थात् तलवार उसके पास है ही नहीं)
धूर मा सूतै, सरग के सपना

अर्थात् धूल में सोया है और स्वर्ग का सपना देख रहा है। सारांश - हैसियत से अधिक आशा लगाये रखना।

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