अब काकर अड़ंगा हे - Ab Kaker Adanga he

जादू के छड़ी न जुन्ना कना रहिस हे अउ न नवां के तीर हावय। तभो ले जनता ल वोकर बने दिन लाय के सपना दिखातेच हे। गरीब जनता ल न पहिली महंगाई ले छूटकारा मिले रिहिस न अभु मिलत हे अउ लागथे कभु नई मिलय। वोकर भागेच म दुःख-पीरा, तकलीफ लिखाय हे।
मेहा पूछथंव के अब कोन बात के अड़ंगा हे। सरकार ह महंगई ल काब नइ कमनियात हे? वोकर हाथ-पांव ल कोर धरे हे? वोला नियम-कानून बनाय बर कोन रोकत हे? जमाखोर-मुनाफाखोर मन ल जेल म काबर नइ डारत हे? अइसन पारटी के सरकार के का फाइदा जउन ह बिपक्छ म रहिके ‘अब्बड़ गरजथे’ फेर सत्ता म आथे तहां ले ‘एकोकनी नइ बरसय।’ अइसन सरकार चलइ ह कोनो सरकार चलइ ए, संगी।
सिरतोन! महंगई कम होही त कइसेच होही? जुन्ना बेपारी मन के राहत ले दूसर कोनो बेपार करय तो काकर बल म। बेपारी मन के सहयोग ले तो पारटी ह जीते हावय। काबर के पारटी ल बेपारी मन से ‘चंदा’ मिले रिहिस। तभे तो पारटी ल बेपारी मन के पारटी कहे जाथे। अब तो वोकरे सरकार हे। बेपारी मन ल सरकार अउ पारटी के आसीरवाद मिले हे। ‘सैंया भये कोतवाल त डर काहे का।’ गरीब मन के विकास भले झन होवय फेर बेपारी, पूंजीपति मन के विकास होबेच करही। देस के बिकास करे के सपना देखातेच रहिहीं।
सिरतोन! देश म अब सबसे तेज चलइया, ‘बुलेअ रेलगाड़ी’ चलही, जउन ह बिकास के चिन्हा बनही। फेर, धिरलहा अउ बिलंब से चलइया पेसेंजर अउ लोकर रेलगांड़ी के हालात ह बद से बदतर होवत हे। बिलंब होवइ म ऐकर बड़का-बड़का रिकाड हे। अब बुलेट रेलगाड़ी अपन तेज गति के रिकाड बनाही?
सरितोन! फेर, लाखों-करोड़ो आम जनता ह ये बुलेट रेलगाड़ी ले दूरिहा रहिही। सिरिफ दरसन करके अपन आप ल भागमानी समझहीं।
वोला देखे के खुसी म अपन गरीबी, दुःख-पीरा ल कुछ समे बर भुला जहीं। हो सकते के आगू अवइया चुनई म जम्मो लोकर अउ पेसेंजर रेलगाड़ी मन ल बुलेट म बदले के ‘वादा’ करंय। जइसे, ये पइत‘बे दिन लाय, भस्टाचार मिटाय, महंगई कमतियाय के वादा करे रिहिन। 
सिरथोन! ग्रीब के छोड़ अमीर घलो होथे, जउन मन रेलगाड़ी म आथें-जाथें। नींद म घलो जागत रहिथें। रेगलगाड़ी के बिलंब होय के पीरा ल सहत सरकार ल कोसत रहिथें। दफ्तर म बिलंब से पहुंचथे त रोज नवां-नवां ओढ़कर बनाथें। अइसन मन के खिंसा बर बुलेट रेलगाड़ी बिलंब हाये के सेती समे बर भारी पड़ही। रेलगाड़ी के बिलंब होय 
के कोनो सीमा नइये। जिहां मरजी, तिहां रोक देथें, पड़े रहव घंटों। 
सिरतोन! चाय बेचइया ह सपना बेच दीच। अइसने परचार करसि के लोगन मन भासन सुनके अपन ‘बने दिन आय’ के सपना देखे लगिन। बतरकिरी कस कीरा झपा गें। सच-झूठ ल घलों परखना जरूर ीनइ समझिन। गरीबी अउ महंगई के बोझ म दबे जनता ल कांही नइ्र सुझिस अउ आंख मंद के वोट डार के जीतवादीन।
जादू के छड़ी न जुन्ना कना रहिस हे अउ न नवां के तीर हावय। तभो ले जनता ल वोकर बने दिन लाय के सपना दिखातेच हे। गरीब जनता ल न पहिली महंगाई ले छूटकारा मिले रिहिस न अभु मिलत हे अउ लागथे कभु नइ्र मिलय। वोकर भागेंच म दुःख-पीरा, तकलीफ लिखाय हे। सत्ता म चाहे कोनो बइठे होवय, महंगई तो बाढ़ने चहे, त अउ का-कहिबे।
गुलाल वर्मा

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