छत्तीसगकढ़ के शासक : बिम्बाजी भोंसले | Chhattisgarh ke Shashak


छत्तीसगढ़ के इतिहास में बिम्बाजी भोंसले का महत्वपूर्ण स्थान है। अपने पिता राघोजी राव से उन्होंने छ0ग0 का प्रांत बटवारे में प्राप्त किया। मृत्यु से पूर्व ही राघोजी ने अपना राज्य अपने चार बेटों में विभाजित कर दिया था। जानकोजी को नागपुर राज्य, मुधोजी को चांदा राज्य, साबाजी को बराबर दरव्हा तथा बिम्बाजी को छत्तीसगढ़।
नागपुर की गद्दी के लिए जानको जी और मुधोजी के मध्य संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में बिम्बाजी अपने सहोदर मुघोजी के साथ थे। मुधोजी और जानोजी का अंतिम संग्राम अमरावती के निकट नांदगॉव रहाटगांव में हुआ। इस युद्ध में जानोजी ने विजय संपादन किया। बिम्बाजी को छ.ग. प्रांत मिल गया था मगर नागपुर की राजनीति में उलझे रहने के कारण वे वहां नहीं आ सके। राज्य व्यवस्था वे दीवान नीलकंठ द्वारा करते थे। बाद में घोड़ों महादेव की नियुक्ति की गई।
मोहनसिंह मराठा शासन की एक सीढ़ी था, जिसे बिम्बाजी ने पूर्ण कर दिया। मराठों के एक विश्वास-पात्र सेवक के रूप में राघोजी प्रथम की मृत्यु के समय वह उपस्थित था और उनकी सेवा किया। मोहनसिंह ने लड़ने की मुद्रा बनाई। सैनिकों को एकत्र किया और अधिकार छीनने वाले संघर्ष की तैयारी की। 
मोहनसिंह बीमार पड़ा और मर गया। बिना किसी विरोध के बिम्बाजी भोंसले की छत्तीसगढ़ कार राज्य बिना किसी खून खराबी के प्राप्त हो गया। रतनपुर में मृत्यु 23 जनवरी 1757 ई. स्थानीय इतिहासकारों रेवाराम बाबू और पं. शिवदत्त शास्त्री ने लिखा है ‘‘बिम्बाजी को मोहनसिंह एंव राघोजी भांसले ने विरोध किया मगर वे सब हार गए’’।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you for Comment..