मराठा आक्रमण के परिणाम- Maratha Akraman ke Prinaam


सन् 1741 में मराठों ने रतनपुर पर आक्रमण किया। इस आक्रमण ने छ0ग0 के भविष्य को परिवर्तित कर दिया। महान मुगलों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने वाला छ0ग0 मराठो के अधिकार में चला गया। सन् 1741 ई. में परिवर्तन की प्रक्रिया का प्रारंभ हुआ। अंचल में इस आक्रमण के परिणामों को निम्न शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है।

01. मराठे विजय हुए

सन् 1741 ई. में रतनपुर पर हुए आक्रमण का पहला परिणाम यह निकाला कि सैकड़ों सालों से छ0ग0 पर स्थापित कलचुरियों का राज्य समाप्त हो गया। विजयी मराठों ने पहली सफलता के साथ विजय अभियान को आगे बढ़ाया। पुराने कलचुरि राजा के स्थान पर नए व्यक्ति को रतनपुर का शासन भार सौंपा। यह नया व्यक्ति पुराने राजवंश की समाप्ति का प्रतीक था। सेनापति पंत मराठा सेना को विजय दिलाने में सफल हों।

02. कलचुरियों की दुर्बलता का ज्ञान

1741 ई. में मराठों की जय और कलचुरियों की पराजय इसी श्रृंखला की एक कड़ी थी। पराजय के कलंक से अधिक कलंक कलचुरियों को लगा। कलचुरियों की दुर्बलता का ज्ञान हुआ।

03. कलचुरियों का खजाना मराठों के अधिकार में

सन् 1741 में रतनपुर पर मराठों के आक्रमण का एक प्रमुख कारण मराठा सरदार रघुजी भोंसले की आर्थिक परेशानी थी। इस परेशानी के चलते ही बंगाल की राह पर पड़ने वाले रतनपुर पर आक्रमण किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि रघुनाथ सिंह से संधिवार्ता इसी मुद्दे पर अटक गई थी मराठे उनसे अधिक से अधिक धन ऐठना चाहते थे। संधि वार्ता के मध्य ही मराठों ने आक्रमण कर कलचुरियों को परास्त कर खजाने पर अधिकार कर लिया। 
ऐसी स्थिति में खजाने से नगद और सोना चांदी के जेवराज, बर्तन के रूप में 50 लाख रूपयों की प्राप्ति सहज ही अनुमान लगाई जा सकती है।

04. रतनपुर के नागरिकों से वसूली

कलचुरि राजा का खजाना लूट कर ही मराठों को संतोष नहीं हुआ। विजयी सेना पराजित क्षेत्र को लूटती है, मराठे इस मामले में ज्यादा की बदनाम थे। मराठों का इतिहास लूटमार का इतिहास रहा है। रतनपुर के समृद्ध नागरिकों को आमंत्रित कर मराठों ने नगर की लूट के एवज में धनराशि की मांग की। समझौता वार्ता का दौर चला और अंत में एक लाख रूपए नगद पर समझौता हुआ।

05. रघुनाथ सिंह पद पर बने रहे

मराठों ने रतनपुर को जीतने के बाद भी कलचुरि नरेश रघुनाथ सिंह को प्रमुख के रूप में रहने दिया। राजा के स्थान पर  उसे सामंत नरेश बनाकर छोड़ दिया। जिन रानियों ने सुलह का झंडा फहरा विजय को आसान बनाया था, उनके प्रति कृतज्ञता के भाव से पं. भास्कर पंत ने पुरानी व्यवस्था को ही आंशिक परिवर्तन के साथ चलने दिया हो। किसी ठोस आधार के प्रमाण के साथ कुछ कहना संभव नहीं है। रतनपुर का राजा अशक्त राजा बनकर छोड़ दिया गया था। सामंत राजा बनाकर छोड़ दिया गया था।

06. भास्कर पंत को रघुनाथ सिंह की आह लगी

सन् 1741 ई. में रघुनाथ सिंह पर मराठा सरदार भास्कर पंत ने धोखे से आक्रमण किया था, उसे पराजित कर अपमानित किया था। सन् 1741 में भास्कर पंत और बंगाल के अलिवर्दी खां की संधि हुई परंतु छलकपट के द्वारा अलिवर्दी खॉं ने सैनिकों के द्वारा मनकुटा नामक स्थान पर भास्कर पंत एवं उसके 20 सैनिक-सरदारों कों मार डाला।

07. रघुनाथ सिंह नियंत्रण मुक्त हुए

सन् 1741 ई. में भास्कर पंत ने रतनपुर के राजा को परास्त किया और रतनपुर पर अधिकार कर लिया। राजा को सामंत राजा बनाने को विवश किया अपने प्रतिनिधि के रूप में एक व्यक्ति छोड़ा। रघुजी को रतनपुर पर आक्रमण करना पड़ा और सन् 1741 में रघुनाथ सिंह का प्रकरण समाप्त हुआ। रायपुर शाखा के मोहनसिंह को रतनपुर का प्रबंधक नियुक्त किया गया।

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