
छत्तीसगढ़ी नाटक का आरंभ काव्योपाध्याय के ग्रंथ में संकलित ग्रामीण वार्तालाप से माना जाता है। 1905 में प्रकाशित पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय कृत कलिकाल को छत्तीसगढ़ी का प्रथम नाटक माना जाता है।
नाट्य-सृष्टि के क्षेत्र में खूबचंद बघेल का नाम अग्रण्य है। उन्होनें ‘‘उंच अउ नीच’’, ‘‘करमछड़हा’’, जरनैल सिंह’’, ‘‘बेटवा बिहाव’’ और ‘‘किसान करलई’’ नामक नाटकों की सृष्टि की है तथा वे छत्तीसगढ़ी के प्रतिष्ठित नाटककार माने जाते है।
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जवाब देंहटाएंNatak
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