छत्तीसगढ़ पर मराठों के आक्रमण का एक कारण मीर हबीब का मराठों को भेजा आमंत्रण था। मीर हबीब का बंगाल के तत्कालीन नवाब से नहीं पटती थी, उसने मराठों को बंगाल पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया।
रतनपुर पर आक्रमण
सन 1741 ई. में रतनपुर पर भास्कर पंत के नेतृत्व में मराठों का आक्रमण हुआ। प्यारेलाल गुप्त ने लिखा है - भास्कर पंत ने सेना सहित बुंदेलख्ांड होते हुए पेंड्रा की ओर से छ0ग0 में प्रवेश किया और ससैन्य रतनपुर पहुंचा और बिना प्रयास उसे उपने अधिकार से ले लिया।
भास्कर पंत को बंगाल पर आक्रमण का आदेश हुआ। भोंसलें की सेना बुंदेलखण्ड होते हुए बिहार, बंगाल जा सकती थी, या दूसरा रास्ता था पूर्व मार्ग की जो लांजी, दर्रे, रायपुर, सारंगढ़, संबलपुर, उड़ीसा होते बिहार का था। भास्कर पंड़ित सीधे बुंदेलखंण्ड पहुंचे।
बाबू गोकुल प्रसाद ने लिखा है - सन् 1741 ई. में जब मराठे छ0ग0 पर चढ़े थे, तब उन्होने अपना केन्द्र के किले को बनाया गया था। सन् 1741 ई. में तत्कालीन जमींदार राघोसिंह को जब वह रतनपुर किले का बचाव कर रहा था, मराठो ने मार डाला।
रघुनाथ सिंह की पत्नी लक्ष्मण कुं. वर और पदम कुंवर ने आपस में सलाह कर किले के बुर्ज से सुलह का सफेद झंडा फहराकर लड़ाई बंद कर दी थी। किलों के फाटक मराठों के लिए खोल दिये गए। मराठा सेना किले के भीतर घुस गई। राजधानी रतनपुर पर मराठों का अधिकार हो गया।
सन् 1741 ई में भोंसलों ने अपना पहला आक्रमण रतनपुर पर किया और किले को चारों ओर से घेर लिया। किला अत्यंत मजबूत था, इसलिए भास्कर पंत की सेना कुछ नहीं कर सकी परन्तु भास्कर पंत ने अपनी चतुराई से वहीं के लोगों को अपने वश में किया और किले का मुख्य द्वार फोड़कर वे अंदर घुस गए। अंदर भयंकर मारकाट हो गई। इस दृश्य का देखकर रघुनाथ सिंह की दोनों पत्नियों ने सफेद वस्त्र बताकर युद्ध समाप्त किया जिसके कारण भास्कर पंत ने युद्ध को रोक दिया शर्त के मुताबिक मराठों ने एक लाख रूपए हरजाने के रूप में वसूल किया।
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