रघुजी का ऋणग्रस्तता ..Raghu g ka Rindgrastata


रघुजी भोंसला सेना साहब सूबा के पद पर नियुक्त थे। मराठा प्रभाव विस्तार के दौर दौरा में उन्हें एक बड़ी सेना रखनी पड़ी थी। इस सेना के खर्च के लिए उन्हें ऋण लेना पड़ा था। सन् 1742 के लगभग भी रघुजी ऋणगस्त थे। ऋण से मुक्ति पाने का एक ही मार्ग था, वह था आसपास के राज्यों को लूटना। नागपुर से पूर्व दिशा के राज्यों को लूटने के उद्देश्य से सेना भेजी गई थी। छ0ग0 का पद्रेश शामिल था। यही कारण था कि कलचुरियों से कोई लड़ाई का कारण न होते हुए भी उकसाने वाली कोई कार्यवाही द्वारा न किए जाने के बावजूद मराठा सेना ने लूट उद्ेश्य से छ.गत्र पर आक्रमण किया। वास्तव में रघुजी ऋण मुक्त होन का उपक्रम कर रहें है।

छत्तीसगढ़ का उपजाउपन
आक्रमणकारी उसी अंचल पर करता है जो धनी इलाका हो। क्षेत्र उपाजाउ हो, जिससे लगान के रूप में प्रतिवर्ष राशि वसूल की जा सके। छ0ग0 के उपजाउ खेतों के बारे में मराठों को ज्ञात था। यहां की वन सम्पदा और उपजाउ खेत आक्रमण कारियों को आकृर्षित करते थे। छत्तीसगढ़ पर मराठों की शुरू से नजर थी, लालच भरी, वन पहाड़ो से आच्छादित यह अंचल यद्यपि धनी नहीं समझना जाता था, पर धान तथा वनोपज ने इसे लुभावना बना दिया था।
छत्तीसगढ़ का कमजोर शासक
रघुनाथ सिंह 1732 ई. में 60 साल की अव्यस्था में रजनपुर के राजसिंहासन पर बैठा। सन 1740 के लगभग उसका एकमात्र पुत्र मर गया। वे अत्यंत शोक संतप्त हो गए। रतनपुर के रघुनाथसिंह और रायपुर के अमरशहिदों के समय में मध्य प्रांत पर नागपुर के भोसलें का अधिकार हो गया था। उस समय मराठों से ठक्कर लेने में प्रायः भारतीय राजागण कांपते थे।
राज परिवारों में फूट

रायपुर शाखा में मोहनसिंह बड़े महत्वाकांक्षी थे। रतनपुर पर भी वं अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे। मोहनसिंह का नागपुर से सतत् संपर्क था। मराठों को रतनपुर पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया हो। कचलुरि शासकों की फूट का लाभ मराठों ने उठाया। 1745 ई. में रघुजी भोसलें ओर उनके साथ कलचुरि वंश का एक व्यक्ति जिसाका नाम मोहनसिंह था, इसी के द्वारा रतनपुर पर आक्रमण किया गया। 1741 ई. के आक्रमण के पीछे रतनपुर के मोहनसिंह का हाथ था।

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