विदरोह के सुर_Vidroh Ke Sur


रामू ह रिक्सा चलावय। वोकर एकलौता बेटा ह तीर के सरकारी स्कूल म पढ़य। रामू सोचय के वोकर लइका पढ़-लिख के कुछ बन जाय। इसी सोच के मास्टर के लइकामन ल कभु-कभु अपन रिक्सा म बइठा के फोकट म किंजार देवय।

सांझकुर जब रामू घर लहुटिस त देखिस के वोकर बेटा रोवत रिहिस। पूछिस त बताइस के मास्टरजी ह आज वोला छड़ी से अब्बड़ पीटे हावय। रामू ह पूछिस - तेहां कांही गलती करे होबे? 
ल्इका ह सिसकत बोलिस - कोनो लइका ह मास्टरजी के टेबल म मेचका ल रख दे रिहिस अउ वोकर नांव ले दीस। तहां ले मास्टरजी ह मारिस।
श्रामू ह लइका ल पोटार लीस अउ कहिस - मार के डर ले पढ़ई-लिखई ल छोड़ देबे का रे? तुहूं ल मोर जइसे रिक्सा चलाय बर हे का? हमर समे म तो हमनल मास्टर ह अब्बड़ मारंय। मार के डर ले पढ़ई-लिखई छोड़ देंव, स्कूल ल तियाग देंव, तेकर सेती आज रिक्सा खिंचत हंव। बिहनिया वोहा रिक्सा निकालिस अउ जइसे सड़क म आइस त देखिस के मास्टर के लइका ह हुत करावत रिहिस। ये रिक्सा, चल मोला स्कूल पहुंचा दे। राहू ह मास्टर के लइका राजू डाहर देखिस, फेर रिक्सा ल नइ रोकिस। वोहा आज सुरूआत कोनो गरीब से करे बर चाहत रिहिस। वोला इहु सुरता आगिस के मास्टरजी ह वोकर लइका ल बिना कोनो गलती के पीटे रिहिस। वोहा तेज चलावत रिक्सा ल आगू बढ़ादीस। राजू ह रिक्सा वाले ल भद्दा-गंदा गारी दीस। फेर रामू के पांव रिक्सा के पैडल उप्पर जल्दी-जल्दी चलत गीस, चलत गीस। 

महेश राजा

1 टिप्पणी:

Thank you for Comment..