लोहा ल घुन लागे - Loha La Ghun Lage

एक ठिन गांव म एकझन साधु रहिस। दान-दक्छिना मिलय तेला मोटरी म राखय। साधु ह सोचय ये जिनिस ल कामा राखंव। मोटरी म चोरी-हारी के डर बने राहय। वोहा लोहा के एकठन लउठी बनवाइस। वोकर भीतरी म उठंका जगा राहय। साधु ह सोना के मोहन ल लोहा के लउठी के भीतर रख दीस। रोज एक-एक ठन मोहर ल खोंचे। अइसन जम्मो पइसा ह वोमा समागे।
एक घांव साधु ह सोचथे। कउन जाने जिनगी रिही के जाही? तीरथ बरत घूम आना चाही। इही बिचार करके साधु अपन बिसवास के चेला ल कइथे। चेला, ए, लउठी ल तोर घर म रख देबे। मय तीरथ जावत हंव। जब लहूटहूं, तब मांग लेहूं। 
हव महराज कहिके चेला ह लउठी ल धर के बजात-बजात घर पहुंचगे। साधु तीरथ-बरत चलदीस। एक दिन चेला ह सोचिस- साधु ह ये लउठी ल मोला काबर दीस। लउठी घलो वजनदार हे। वोहा लउठी ल जोर-जोर से पटके लागिस। थोरकिन म सोना के माहर ल बिखर गे। येला देखके चेला ललचागे।
साधु तीरथ-बरत ले लहूट के अपन लउठी ल मांगिस। चेला कहिस - महराज लोहा के लउठी म तो घुन लगगे अउ नंदागे। साधु ह चुप्पे रहिगे। वोहा चेला के लइका ल अपन आसरम म ले आनीस। थोरिन बेरा म चेला ह साधु के आसरम आइस अव अपन लइका के बारे म पूछिस।
साधु ह कहिथे - अरे, का बतांव चेला, तोर लइका ल तो गिधवा उठा के लेगे। चेला ल भरोसा नइ होवय। वोहा फेर पूछिस - साधू महराज लइका ल गिधवा ह कइसे लेग सकत हे?
साधु कहिथे - जइसे लोहा के लउठी ल घुन खागें, वइसने तोर लइका ल गिधवा लेगे। चेला सन्न खा गे। झट ले वोहा गुरू के चरन ल धरलीस। तहां ले दउड़त अपन घर गिस अउ लोहा लउठी ल ले लानिस। साधु ह वोकर लइका ल आसरम ले निकाल के दे दीस। तभे ये बात कहें जाथे - ‘जइसने ले तइसने भिड़े, सुन ले राजा भील, लोहा ल घुन लागे, लइका ल लेगे चील।

डॉ. प्रकाश पतंगीवार

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