1741 ई. में मराठा सेनापति भास्कर पंत ने रतनपुर के राजा रघुनाथसिंह को परास्त किया। रघुनाथसिंह को शासन से पृथक कर अपने व्यक्ति को शासन सूत्र का संचालक नियुक्त किया। बिम्बाजी भोंसले ने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने सेनापति पांडुरंग को छ0ग0 पर अधिकार करने के लिए भेजा, मगर पांडुरंग को सफलता नहीं मिली, पराजय व निराशा से वह लौटा था। मोहनसिंह बीमार पड़ा और मर गया। इस प्रकार से छत्तीसगढ़ पर मराठा आधिपत्य के मार्ग की मुख्य बाधा दूर हुई। मई 1857 ई. से ही छत्तीसगढ़ के इतिहास का आधुनिक युग का प्रारंभ मानना अधिक समचीन होगा।
बिम्बाजी ने उदारतापूर्वक रतनपुर के कलचुरि राजवंश शिवराज सिंह को उसके परखों के हरेक गॉव के पीछे एक रूपया परवरिश के लगा दिया। यह प्रबंध 1822 ई. तक चलता रहा।
मराठा प्रदेश में जन्में, पले, पढे बिम्बाजी विरासत में मराठा चरित्र पाए थे।
बिम्बाजी को अपने पिता से उत्तराधिकार के रूप में जो छ.ग. राज्य मिला था, उसकी सीमा काफी दूर तक फैली हुई थी। वर्तमान छत्तीसगढ़ के जिले तो इसमें सम्मिलित थे ही संबलपुर,पटना के 18 गढ़ भी सम्मिलित थे। बिम्बाजी भोंसले के राज्य की सीमा उत्तर पश्चिम में मंडला तक था। बघेल खंड से उत्तरपूर्व में सरगुजा रियासत तक तथा पूर्व में सबंलपुर तक सीमा थी। दक्षिण में धमतरी, परगना, कांकेर, कुरूद राज्य में थे। बस्तर स्वतंत्र राज्य था। बिम्बाजी को प्रशासनिक सुधार की ओर ध्यान देनेन का मौका पूर्वार्ध में नहीं मिला। रतनपुर के महामाया मंदिर के प्रमुख पुजारी पंडित पचकौड़ को 1758 ई. में ही वार्षिक अनुदान देने की घोषणा की गई। पुराने राजवंश की देवी व उसके मंदिर तथा पुजारी के लिए की गई इस व्यवस्था ने बिम्बाजी की उदारता को प्रदर्शित किया।
शासन का पूर्वार्ध :-
बिम्बाजी को अपने पिता से उत्तराधिकार के रूप में जो छ.ग. राज्य मिला था, उसकी सीमा काफी दूर तक फैली हुई थी। वर्तमान छत्तीसगढ़ के जिले तो इसमें सम्मिलित थे ही संबलपुर,पटना के 18 गढ़ भी सम्मिलित थे। बिम्बाजी भोंसले के राज्य की सीमा उत्तर पश्चिम में मंडला तक था। बघेल खंड से उत्तरपूर्व में सरगुजा रियासत तक तथा पूर्व में सबंलपुर तक सीमा थी। दक्षिण में धमतरी, परगना, कांकेर, कुरूद राज्य में थे। बस्तर स्वतंत्र राज्य था। बिम्बाजी को प्रशासनिक सुधार की ओर ध्यान देनेन का मौका पूर्वार्ध में नहीं मिला। रतनपुर के महामाया मंदिर के प्रमुख पुजारी पंडित पचकौड़ को 1758 ई. में ही वार्षिक अनुदान देने की घोषणा की गई। पुराने राजवंश की देवी व उसके मंदिर तथा पुजारी के लिए की गई इस व्यवस्था ने बिम्बाजी की उदारता को प्रदर्शित किया।
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