बिम्बाजी का जमींदारों से संबंध :- Bimba G ka Jamidaar se sambandh


राज्य की आय का तीसरा प्रमुख साधन जमींदारों से वसूला जाने वाला टाकोली था। बिम्बाजी अपने जमींदारों से पूर्ववर्ती कलचुरियों की भांति टाकोली वसूलते थे। छ.ग. की भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि प्रशासन के समास्त सूत्रों का आधार राजधानी नहीं हो सकता था। छ0ग0 के प्रमुख 32 जमींदारों 68721 रूपए टाकोली के रूप में वसूल होता था।
बिम्बाजी भोंसले स्वयं छत्तीसगढ़ के जमींदारों से, संबलपुर के जमींदारों से वार्षिक टाकोली वसूल करते थे। बिम्बाजी ने जिन जमींदारों को परास्त किया उनसे इकरानामा लिखवाया। भोंसला राजा के आदेश का पालन, विद्रोहियों को सहायता न देना वार्षिक टाकोली पटाना, अतिरिक्त वसूली न करना, राजाओं या जमींदारों को विद्रोह, के लिए उत्तेजित न करना, शांति व्यवस्था बनाए रखना, प्रजा का शोषण न करना। इस तरह से दस धाराएं होती थी, जिन जमींदारों ने नई व्यवस्था के साथ समझौता कर बिम्बाजी की सहयोग दिया उनके साथ अच्छा व्यवहार किया गया।
कांकेर बिम्बाजी के अधीनस्थ था। धीराज सिंह कांकेर के राजा थे। सिहावा तालुक्का कांकेर के अधीन था। बस्तर राजा सिहावा जीतना चाहता था। बिम्बाजी ने कांकेर राजा की सहायता की और बस्तर राजा के पीछे हटने के लिए बाध्य किया। खैरागढ़ के जमींदार ने बिम्बाजी का विरोध किया, वह दंडित हुआ और टाकोली की राशि बढ़कर 24 हजार रूपए वार्षिक कर दिया गया। 1768 ई. में खैरागढ़ पर बिम्बाजी ने आक्रमण किया था। 1784 ई. में पुनः आक्रमण भास्कर पंत के नेतृत्व में हुआ। सरगुजा रियासत पर भी महिपतराव काशी के नेतृत्व में आक्रमण किया गया (1781 ई.)। सरगुजा से 3 हजार रूपए टाकोली ली जाती थी। चांग भखार रियासत पर भी बिम्बाजी ने 1775 ई. में आक्रमण किया और उसे वार्षिक टाकोली देने के लिए बाध्य किया। कोरबा के जमींदार ने बिम्बाजी का विरोध किया था। अतः उस पर आक्रमण किया गया। विद्रोह का कठोरतापूर्वक दमन किया गया। बिम्बाजी कोरबा जमींदार से इतने नाराज थे कि न केवल पांच हजार रूपए का दंड दिया बल्कि जमींदार से इतने नाराज थे कि न केवल पांच हजार रूपए का दंड दिया बल्कि जमींदारी जब्त कर ली गई। जमींदारी जब्त करने की यह एकमात्र घटना थी। चाम्पा जमींदार दीवान कहलाते थे।
1781 ई. में धमधा पर आक्रमण किया गया, पराजय निकट जान जमींदार ने अपनी पत्नी के साथ जल समाधि ले ली। बिम्बाजी का अधीनस्थ होकर जीना उसे सहय नहीं था। उसका पुत्र जमींदार बनाया गया। टाकोली देना उसने स्वीकार किया। टाकोली पटना व अधीनस्थ रहना ये ही दो मुख्य शर्ते थी जो राजा व जमींदारों से स्वकीकार करवाया जाता था।
बिम्बाजी भोंसले का छत्तीसगढ़ के इतिहास में महत्वपुर्ण स्थान है। राज परिवार के होने के कारण नागपुर दरबार में छ.ग. प्रांत महत्व पाया। तीन पत्नियां - आनदीबाई, उमाबाई, रमाबाई थी। किले के चारों और खाइयां खुदवाई। राममंदिर,लक्ष्मीनारायण मंदिर, खंडोवा मंदिर बनवाया। मुसलमानों के लिए रतनपुर में मस्जिद बनवाया।

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