बाढ़त महंगाई म पढई घलो ह जी के जंजाल हो गे

बाढ़त महंगाई म पढई घलो ह जी के जंजाल हो गे हावय। एकझन टूरा अउ एकेचझन टुरी ल पढ़ावत ले लगथे जम्मों खेती-खार ह बेचा जही। अइसे तो जम्मो जिनीस के भाव ह आगी लगे हे। आतको म मरइया ल अउ मारे बर ये स्कूल-कालेज म थोकेच कन पइसा म पढ़ई-लिखई हो जवत रिहिस हे। जेन ल पढ़ना रहाय तेमन पढ़न, अउ जेन नइ पढ़य-लिखय तेमन खेती-बारी अउ आने काम करय। अब तो सरकार ह सब्बे लइका-सियान ल पढे बर जोर देवत हे। डोकरा-डोकरी मन घलो पढ़े-लिखे ल सिखत हे। येमा हमनला कोनो आपत्ति नइ हे, फेर हम गरीबमन अपन लइकामन ल बने कस स्कुल-कालेज म कइसे पढ़ा सकथन, जब साल के साल मनमाने फीस ल बढ़ावत जात हावय। अब ले ना ये रविशंकर यूनीवरसीटी वाला मन घलो हर साल परीक्षा फीस ल बढ़ाय के फइसला ले हे। मोर टुरा अउ टुरी दुनोझन कालेज म पढ़त हावय। यइसे म मोर मुंड़ा नइ पूर गे, तुहीमन बताओ रे भई। टूरा ल नइ पढाहूं त ओहा कोनो काम के नइ रिही। काबर के स्कूल तक पढ़े-लिखे कतको लइका मन ठलहा घुमत हे। पढ़-लिख ले हन कइके ओमन खेत-खार म कमावय नइ, अउ अतका नइ पढे़ हे के ओमन ल सरकारी नउकरी मिलय। गंवई के इही लइकामन के हाल ल देखके मेहा सोचे रहेंव अपन टूरा-टूरी मन ल काॅलेज पढ़ाहू अउ बड़ेकजान साहब बनाहूं। फेर रोजेच-रोजेच के महंगाई बढ़ई म मोर तो हाथ-गोड़ फूलत हावय। टूरी के जादा चिंता होवत हावय। काबर के काॅलेज पढ़ लेतीच तक ओकर बिहाव ह बने घर म हो जतीस अउ दमाद घलो ह सरकारी नउकरी वाले मिलतीस। इही बात ल गुनत-गुनत घर के चउरा म बइठे रहेंव की जोर के आवाज आइस। मेहा मुड़ी उठा के देखेंव त मोर पड़ोसी के बड़का टूरा रिहिस।
कका, पांव परत हव गा। ईश्वर ह सहर ले कब आही। होली तिहार बर घलो नइ आय रिहिस हे। अपन फटफटिया म जिसं पेठ अउ टिसरट पहिने, आंखी म चसमा चढ़ाये रिहिस बुजा ह। ओहा आठवीं कलास ले आघू नइ पढ़े रिहिस। फेर आजकल अइसन पइसा कमात हे के झन पूछव। दारू भट्ठी म काम करथे। ओकर छोटे भई हर तो पांचवी फेल हे। फेर उहू हर बिकट पैसा कमाथे। काबर की ओहा फेकटरी म कमाय बर जाथे। ओकर बहनी के विहाव ह इसी साल सरकारी स्कूल के चपरासी संग होइस हे। ओहा दूसरी भर पढ़े हे।
कका, कइसे कलेचुप हस गा, कुछू बोलत-बतियात नइ अस। ओकर बात ल सुन के मोर मुहुं ले बस अतके निकलिस ईश्वर ह परिक्षा के बाद म आही घासी। महंगी पढ़ई ल देखके सोचतथव कि पढ़ाय के जिद ल छोड़के लइकामन ल खेलत देतेव त हो सकथे टुरा ह सचिन, धोनी कस ब जथीस अउ टूरी ह सनिया। काबर ‘खेलवे-कूदिबे त होबे खराब, अउ पढ़बे-लिखबे त होवे नवाब’ हाना ह तो उल्टा हो गे हे। अब तो खेलइया-कुदइया मन ह ‘नवाब’ बनत हे। देखत हव न, विश्वकम जिते के के बाद म किरकेट खिलाड़ी मन करा कइसे छानी फाड़ के रूपिया बरसत हे।

गुलाल वर्मा

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