बंधन अउ सुरक्षा कवच म बहुत बारीक अंतर होते (Bandhan au Surksha Kawach m Bahut Anter hote)


अपन परिवार के लोगनमन के बात-बात म टोकइ ले परेशान होके एकझन लड़का ह घर ल छोड़े बर मन बना लीस। अउ रात के कलेचुप झोला धर के रेलवे स्टेशन डहर निकल गे। रद्दा म गांव के गुरूजी ह ओला देख के रात म झोला धर के जाए के कारण पूछिस। अतका में लड़का ह बताइस कि ओहर घरवाले मन के टोकइ से परेशान होगे हे। ओला एकोकनी आजादी नइ हे। एकरे सेती घर ल छोड़के जात हावव। अतका सुनके गुरूजी ह कहिस- तेहर रात ल इहिंचे बिता गे बिहिनिया चल देबे। लड़का ह सुते बर धरिस त गुरूजी ह ओकर खटिया तीर दोठीन दीया जला दीस। एकठीन दीया ल कांच के बने स्टैंड के तरी रख दीस अउ दूसरे दीया ल अइसने खुल्ला में रखीस। खुल्ला म रखे दीया ह थोकीन बेरा म बुता गे। फेर स्टैंड में रखे दीया ह जलत रिहीस। गुरूजी बोलिस।देख। जोन दीया बंधनमुक्त अउ खुल्ला म रिहीस हे वो ह जल्दी बुता गे। अउ जेन दिया ह सुरक्षा घेरा म हे ओहर अभी ले उजियारा फइलावत हे। ओला हवा-पानी काहीं के डर नइयें। अतका सुन के लड़का ल अपन गलती के अहसास होगे। ओहर बिहिनिया उठिस अउ गुरूजी के पांव पड़के अपन घर चलदीस। ये काहिनी ले हमन ल ये शिक्षा मिलथे कि बंधन अउ सुरक्षा कवच म बहुत बारीक अंतर होते।


शिवराम चंद्राकर 

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