धीर म खीर हे, लउहा म हउआ हे

माखन ह धर-मकरम के मनइया अउ सद्विचार वाले मनखे आय। बनी-भूती ह ओकर आमदानी के साधन हरे। ओकर मेर एको पतरी धरती नइये। कमाथे तभे खाथे। नइते हंडि़या उपास रइथे। गांव म भगवान तिहार के सेती ओला काम नइ मिलिच। ओ दिन ओकर घर खाय बर दाना नई रहिच। पेट भूख म पोट-पोट करत रहाय। गांव के परेमू सेठ करा जा के कइथे सेठ ‘मोला थोर-बहुत खाय बर चांउर दे दव में हर बनी करके तुंहर कर्जा ल छूट दे हूं। सेठ घर पइसा रूपिया अउ दाना लबालब भरे राहय तभो कांहीच गाहना धरे बिना कोनो ल उधार बाढ़ी नइ दय। माखन मेर राहन धरे बर कांहीच नइ रहाय। एक दिन झन साधु ओला एक ठन कागज म लिख के एकठन विचार दे रहाय। उही नानकुन कागज ल धर के सेठ करा जाके कथे - ‘‘धीर म खीर हे, लउहा म हउहा हे।’ सेठ कथे ये कांही काम के नइये फेर तोर करलइ देख के दे दे देंथव। कइके ओ-कागज ल अपन मुड़सरिया के ऊपर मिथिया म चटका दीच। अउ उहीच दिन सेठ ह बेपार करे बर परदेश निकल गे।

टोती सेठ ह परदेश जाय बर पाछू करिच अउ ऐती सेठइन के छोकरा लइका अवतरंगे। ओ बखत फोन तार मोटर गाड़ी काहिंच नइ राहय। सेठ मेर संदेसिया घलो नइ पठोइच। अइसे-तईसे सेठ ल परदेश म बारा बच्छर पहागे। ये डाहर सेठ घर माखन ह केउ बेर कर्जा दे बर आवय फेर सेठ मेर भेंट नइ होवय।

सेठ के छोकरा सेठे सही गोरिया अउ ऊंच पुर सइघो जाड़ होगे। एक दिन अपन सेठ दाई ल कथे दाई मोर माथा खोले असन अब्बड़ पिरावत हे। सेठइन ओकर कपार म घी ल ठोकिंच, अउ माथा ल चपकत-चपकत ओकरे संग ढनगे रहिच। ढनके-ढनके महतारी-बेटा के एकेठन खटिया म नींद लटक गें। ओतकेच बेर सेठ परदेश ले घर लहुटथे। घर ले उघरा भिंडिंग-भड़ांग देखथे। मुहाटी कुरिया कोनो मेर कपाट-फैरिका नइ ओधे राहय। सेठ सोज अपने सुते के कुरिया जाथे। कुरिया ल देखके ओहा अकबका जथे। आकर गोसइन पर पुरूष संग एके खटिया म सुते हे। अतका ल देखिच तांह ले सेट के मइन्ता भोगा गे, जी अगियागें, एडी के सिर तरवा म चढ़गे। सेठ मनेमन सोंच डरिच। अब इन दुनो झन के जान लेहूं।

सेठ ह कोठा डाहर जाके टांगिया धर के मारे बर तीर म जाके उबाय रहिच। ओतके बेर सेठ के नजर भिथिया मा चटके लिखना म पर गे। ओमा लिखाय राहय ‘‘धीर म खीर हे, लउहा म हउहा हे’’। सेठ सोंचथे मारबेच तो करहूं फेर थोकन जगा के पूछ लेथव, घर ले भगा तो नइ सकय।

सेठ दुनो झन ल चेचकार के उठाथे, अरे पापिया-पापनीन हो तुमन कइसे निसंख सुते हो। ओतका म बाबू उठके कइथे-दाई ओ उठ तो कोन आय हे। टंगिया धरे हे, हमन ल मारे बउ उचाय हे। सेठइन उठ के पांव ल परिच अउ कथे-पांव ल पर के बेटा ये ह तो ददा आय। सेठइन सेठ ल सब हाल-चाल ल बताथे अउ कथे - तुमन घर ले निकलेव अउ ये तुंहर बेटा अवतरिच हे। सेठ कइथे हाय! में का करत-करत का कर डरे रहेंव? तुम दुनो झन ल मारहूं कइके सोचे रहेंव। फरे ये माखन के दे चिट्ठी भिथिया म चटके रहिच तेला देख के धीरज धरेंव अउ बेटा दुनों झन ल मान डरतेंव। लिखना के तेसी बांच गेंव।

दुसरइया दिन माखन पइसा धर के सेठ करा आ के पांव परथे। सेठ मोर लइका मन ल खाय बर देके बचा देच। सेठ तोर पइसा अउ ओकर बियाज घलो कतका हो ही तेला बता अउ मोर कागज ल लहुटा दे। सेठ कइथे माखन भाई आज तो कागज ह मोर बुढ़त परवार ल उबार लीच। एक कागज के लिखना ल नई पढे रइतेंव त मोर गोसइन अउ बेटा के मुख ल नइ देख पातेंव। सेठ ह माखन मेर हाथ जोड़ के कइथे ये ले अउ पइसा फरे ये कागज ल इहें राहन दे। तभे तो केहे गे हे - ‘‘धीर म खीर हे, लउहा म हउआ हे’। कोनो काम ल बने सोंच विचार के करय नहीं ते फरे पाछू पछताय बर लागथे।


तुकाराम असफल

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