बहुरिया (Bahuriya)

समेरी काकी के नांव गांव म मंथरा काकी के नांव ले जाने जाय। काबर कि, जहां समेरी तहां हेमरी। एखर लागा, वोकर बोहाता। सब के बरोबर खभर राखे। त तो मंथरा अपन पाठ म पाके राहय। फेर घर-बार के थोरिक चिन्ता-फिकर नइ करय। फकत गांव-गोदहीं के चिन्ता डाटे राहय। फलानी के बहु, ते ढेकानी के दमाद, त काखर गरवा, काखर छेरी-बरई अउ रंग-रंग के अमका-ढमका ताय।

कहानी

गांव म एकझन सुकालु नांव के ठेठवार राहय। वोकर एकझिन बेटा रिहिस। बड़ सिधवा-सुजानिक। पढ़ई के बारा पुरिस, ताहन ले तीर के गंवई ले बहुरिया लालिन। बड़ सुग्घर चंदैनी कस बहु के नांव सिमरन रिहिस। जस नाव तस गुन। त ठेठवार पारा म बहुरिया मन के चलती राहय। दूध-दही लेवइया काकी-दाई अउ जहुरिया के बिकट मान-मरजादा करय। तभे तो गांव भर उखर सनमान म कोनहो किसम के टिपा-टिपली नइ बजाय। फकत गुन गावत राहय।
मंथरा काकी के करिया छांव का परिस ठेठवार के घर अउ पारा-परोस म हांव-हांव करई चालू हो गे। साल भर होय नइ होय हे फेर सिमरन के देह गरू नइ होवत हे कहिके गांव भर गोहार परइया मंथरा काकी आय। का नइ केहे होही माइलोगन जात ला, फेर अपन भुला जथय के बहु ह कोनहो दाई के बेंटी आय। नवा बहुरिया मन के तरिया म नहवउ मुसकिल होगे। गांव-गली म निगलंय तभो डरत राहंव के कोनो मंथरा काकी मत उभर जाय। काबर के जेन मिलही तेकर करा दू के चउदह बतइया आय। कोनो नई मिलही त वोकरे सात पुरखा ल नइ चुरो दिस त अपन बाप के बेटी नोहे मंथरा काकी ह। ऐसो के असाड़ म सरलग पनदरही पानी के गिरई अउ झड़ी करई म सबो के जांगर टूट गय तइसे लागय। एक दिन गांव म देखो-देखो होगे। मंथरा काकी के हाथ-पांव जुड़ हेागय। जीभ हर एकंगू निकल गे राहय। आंखी ह बोड़बोटाय, खटिया मं बेसुध परे राहय। कोनो डाक्टर बाबू के दवई अउ गुलूकोज के बाटल हर काट नइ करत रिहिस। तभे सिमरन ला जानबा होइस। त तुरते मंथरा काकी के सुध लेवत, उंकर घर गीस। देखते भर जान डारिस के काकी ल एकंगू लकवा मारे हावय।
सिमरन हर नरस बाई के पढ़ई घला करे रिहिस। अउ डाक्टर तीर साल-दू साल रहिके सीखे घलो रिहिस। डाक्टर के सुजी-पानी देवई अउ गंवई के मरीज के तुरते इलाज करई ल। सिमरन ह गुलूकोज ल तुरंते हेरके हाथ-पांव बढि़या मालिस करें के उदिम करिस, मंथरा कानी के थोरकुन सुध लागिस अउ हुद करइस पानी-पानी।  
सहर के बड़का अस्पताल लेगे बर मंथरा काकी ल सरकारी जीप म बइठइन। फेर सरकारी डरावर ह आने गांव के रिहिस। सांझ कुन गंवई के अस्पताल बंद होईस तहां वोहर अपन गांव चल दे रिहिस। त हिमत करके सिमरन ह डरावर के सीट म चघिस अउ आंगनबाड़ी वाली बहिनी अउ मितानिन ल संग धर के सहर के अस्पताल पहुचीन। डाक्टर मन किहिस बरे करेस बेटी, ते हिम्मत करके अतका दुरिहा अस्पताल ले आनेस। नइ ते काकी के सरीर के लहू ह पानी बरोबर जुड़ होवत रिहिस हावय। लकवा ह बीमारी नोहे, काम-काजी अउ खान-पान के लापरवाही के सेती होथे। खून के दउरा बरोबर सरीर म नइ होवय तेकर सेती कभू-कभार जान घलो चल देथे।
बिहान दिन मंथरा काकी ह बोले-चाले लागिस। अउ सिमरन ले हाथ जोर के माफी मांगत गोहार पर के रोय लागिस। अस्पताल वाला मन घलो डरा गय। फेर सिमरन ह काकी के हिम्मत बढ़इस। अउ पोटार के कहिस- काली हमन गांव जाबो, अब तेहां बने होगे हस। चिन्ता-फिकर के बात नोहे। मंथरा काकी ह सिमरन ल पोटारत कहिथे - तोर असन बहुरिया गांव-घर मं रहि त काबर काखरों तबियत बिगड़ही दाई। काकी हर गांव लहुट के सबोल अपन दुलौहिन बहुरिया के जस के गूनगान करत दिन बिताथउ अउ संझा बेरा अपन बेटी के हाथ के चाय पीये खातिर सिमरन ल सुरता करत वोकर मुहाटि म खच्चित जाथय। गंवई भर कहिथे-सिमरन ह वो जनम के मंथरा के बेटी आय। त मंथरा कहिथे - यहूं जनम म सिमरन मोर मयारूक बेटी आय।

राजा राम रसिक
भिलाई


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