हास परिहास

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बरा खाहूं कहिथे समधिन,
बरा कहां पाबे रे।
हाथ गोड़ के बरा बना ले,
टोर-टोर के खाबे रे।
सुघ्घर मखना खाय बर,
अउ पिराये पेट रे।
का लइका बियाये समधिन,
जस हंसिया के बैंठ रे।
खीरा फरिस, जोंधरा फरिस,
फरिस हावय कुंवरू रे।
एक समधिन ला चलो नचाबोन,
गोड़ मा बांध के घुंघरू रे।
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