छत्तीसगढ़ विवाह गीत (Chhattisgarh Vivah Geet)


* विभिन्न् प्रदेशों, विभिन्न जातियों में विवाह की अलग अलग प्रथाएं है। छत्तीसगढ़ की भी अपनी पृथक विवाह प्रणाली है। 
* आर्य और अनार्य पद्धतियों की मिली -जुली विवाह प्रथाएं इस अंचल में देखी जा सकती है।
* तीन दिन में संपन्न हाने वाले विवाह संस्कार को ‘तीनतेलिया‘ कहते है। और पॉच दिन में सम्पन्न होने वाले ‘‘पॉचतेलियॉ‘‘ कहा जाता है। इनमें किसी प्रकार का अंतर नहीं होता। 
* संभवतः गरीब लोगों के द्वारा विवाह को संकुचित कर ‘‘तीनतेलियॉ‘‘ और धनिक लोंगो के द्वारा विस्तृत कर ‘‘पांचतेलियॉ‘‘ का प्रचलन किया गया होगा। 
* अतः यह प्रणाली पीढ़ी दर पीढ़ी-इसी रूप में स्वीकृत मानी गई है, अतः आज तक उसी रूप में चलन में है।

चुलमाटी - 

चुलमाटी को विवाह का प्रारंभ माना जाता है। सुवासिनें (जिसमें वर की भाभी, बहिनें और बुआ शमिल रहती है) विवाह में उपयोगी चूल्हों के लिए मिट्टी लाने के लिए गांव के बाहर किसी नदी या तालाब के किनारे जाती है। मिट्टी खोदते समय सुवासिने समवेत स्वरों में गीत गाती है।

तेलचघी - 

चुलमाटी‘ में उपरांत हरिद्रालेपन का कार्य शुरू कर दिया जाता है, जिसे ‘तेलचघी‘ कहते है। यह कार्य वर-वधु दोनों पक्षों द्वारा किया जाता है। विवाह मंडप में वर या कन्या को (उनके घरों में) पीढ़े पर बिठाकर उनके अधोअंग में उपाग की ओर हल्दी फेरती हुई सुवासिनें पॉच बार हल्दी का लेपन करती है।

बारात प्रस्थान - 

बारात की पूरी तैयारी हो जाने के पश्चात सभी बाराती सज-धजकर रवाना होते है। सुवासिनें उनकों विदाई देती हुई गीत गाना प्रारंभ कर देती है। इन गीतों में वर के पूर्वानुराग का चित्रण मिलता है। उसके मनोभावों का सूक्ष्माकन इन गीतों की विशेषता है।

बारात स्वागत - 

बारात कन्या के गॉव में पहुंच जाती है। बारात की परघानी को देखने की उत्सुकता कन्या पक्ष वालों के मन मे है। कोई स्त्री छत पर चढ़कर देख रही है, तो कोई देहरी में निकलकर। सुवासिनें बरात की अगवानी करने को आगे बढ़ती है और स्वागत गीत उनके मधुर कंठो से मुखरित हो उठता है।

टिकावन - 

विवाह के विविध विधि विधानों में ‘टिकावन‘ का भी छत्तीसगढ़ में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। इस अवसर पर कन्या पक्ष वाले यथाशक्ति अपने दामाद-बेटी को ‘भेंट देते‘ है।

भॉवर - 

सात फेरों के पड़ते ही विवाह की रीति संपन्न मानी जाती है। भॉवर के आनुष्ठानिक कार्य के साथ पंडित द्वारा मंत्रोच्चरण किया जाता है। एक प्रचलित लोकगीत में बताया गया है कि भॉवर की बेला अब आ गई है। वर-वधु एक गॉठ जुड़ गए है। वे फेरा लगाना प्रारंभ करते है, तभी सुवासिने कोमल कठो से गीत गायन करती है।

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