छत्तीसगढ़ी उपन्यास आवा के प्रेरणा स्त्रोत गांधीवादी प. गंगाप्रसाद द्विवेदी तथा आवा से जुड़ा यह अंश




‘‘गांधी उद्गरे हे। ओकर लाम-लाम हाथ झूलत हे, माड़ी-माड़ी ले। कनिहा म पटकू उघरा बदन, चेंदुवा मूंड, नानचुन घड़ी के झूलेना। हाथ म धरे हे लउठी। रेंगथे त रेंगते जाथे। जेती ओ रेंगथे जम्मो मनखे उही कोती रेंग देथें। ललमुंहा अंगरेज बक्क खा जथे। धरे सकय न टोके सकय। अंधौर अस उठे हे, गांधी उद्गरे हे।’’

बिसाहू के बात ल सुनके लीमतुलसी गांव के बड़े मिलय। गांव म बइठे बइठे गांधी बबा के परछो नई पाय सकव। हम देख के आवथन। गे रेहेन वर्धा। उहा धनीराम दाऊ पढ़ाथे। बरबंदा वाला धनीराम। ओकर परसादे गे रेहेन उहां। गांधी बबा काहत लागय। बोकरी के दूध पीथे। पेनखजूर हा ओकर खाजी ये। अपन काम ल खुदे करथे। पैखाना तक ल खुदे उठाथे। दाऊ धन्न हे गांधी महातमा। अपन तो उठाबे करथे हमर कस्तूरबा दाई सो घलो बुता कराथे गा। इहां दतवन मुखारी तक ल हम दूरा के दाई सो मांगथन। अढ़ो-अढ़ो के हलाकान कर देथन। उहां गांधी बबा के देखौ कारबार त तरूआ सुखा जथे। इहां हमन ‘‘अपन ल तोपै दूसर ल उघारै’’ वाला हिसाब जमाथन, फेर वाह रे गांधी महातमा। हमर तुंहार अंग ल कपड़ा म ढांके बर खुदे उघरा होगे जी। कहिस मोर ददा भइया मन उघरा हें। गरीब हें। त मै जादा पहिर के का करहूं। चरखा म सूत बनाथे अऊ उही सूत के बने मोटहा झोटहा कपड़ा के बने पटकू म बपुरा ह इज्जत ल ढांकेथे।

दाऊ सन्ना गे। यह का बात सब सुनाब म आवथे भाई। दाऊ पूछिस - ‘‘का बिसाहू, अंगरेज कांही नई करय गा?’’ दाऊ के बात ल बिसाहू लमइस। बात अइसन ये दाऊ-आगी खाही ते ह अंगरा हागबे करही। अंगरेज तो मटिया मेट करना चाहते हें, खन के गड़िया देतिस गांधी ल। फेर जनता जनार्दन के गांधी ल कोन हाथ लगाय सकही दाऊ। जब तक ये देस ल आजादी नई मिलही, गांधी ल काल घलो नई छुवे सकय। उद्गरे हे गांधी हमला अजाद करे बर। भागवन ताय। अजादी के लीला देखाही अउ अपन लोक जाही।

मंडल के बात ल सुनके कन्नेखी देखिस दाऊ का अउ किहिस तोरे अस गुन्निक बर केहे गे हे मंडल आजे मूड मुड़इस, अउ आजे महंत बनगे।
कइसे दाऊ? मंडल तिखारिस

बात अइसे ये बिसाहू - दाऊ लमइस अपन बात - किथे नहीं कहां गे कहूं नही, का लाने कुछू नहीं ताऊन हाल तोर हे। अरे भई जब तैं वर्धा गेस अऊ गांधी जी से मिलेस त कुछू सीखे के नहीं?

का सिखतेंव दाऊ। मैं तो धनीराम जी के परेम म जा परेंव। वे किहिस, आजा रे भाई, महातमा जी के आसरम देखाहूं। त जा परेंव। सीखेंव कुछू नहीं दाऊ।

दाऊ थपड़ी पीट के हांसिस अउ किहिस - ‘‘मंडल, चल अब सीख ले गांधी जी नारा दे हे - ‘‘करव या मरव’’ जाने नहीं। मतलब ये करना हे या मरना हे। माने के करके मरना हे। देखे जाही हवा अगर टेढ़ी चले तो रस्सी से बंधवा दूंगा हा..हा...हा...हा

बिसाहू संग अउ दू चार झन सकलाय मनखे मन हांसिन। हांसे के कारन ये रिहिस के दाऊ बिसनू लीमतुलसी वाला बनय साल साल दसहरा के दिन रावन। अउ बोलय डेलाग - हवा अगर टेढ़ी चले तो रस्सी से बंधवा दूंगा। गांधी महातमा के बात म घलो कूद परिस रावन बन के बिसनू दाऊ। रघौत्तम महाराज किहिस - वाह दाऊ, रहि गेसन रावन के रावन। गांधी जी काहत हे एक गाल ल कोनो मारय त दुसर गाल ल दे दव। अउ तैं कहत हस-हवा अगर टेढ़ी चले तो रस्सी से बंधवा दूंगा।

सदा दिन बंधवाय मरवाय ल तो जानेव। अऊ का करहू। अंगरेज घलो गत मारत हें तुहूं उही काम करत हव। वे हा गोरिया अंगरेज ये तुम करिया अंगरेज। 

दाऊ पंडित रघोत्तम के बात ल सुनके किहिस - पालागी ग महराज। बने आसिरवाद देथव पंडित जी। अरे हमूं गांधी बबा के पाल्टी म मेम्बर बनगेहन महराज। करबो अऊ मरबो। बिसाहू मंडल हा सुनइस किस्सा लंबा चौड़ा त महूं कहि परेंव भई। लेकिन काली बिहनिया हम सबला गांव के पीपर चौरा म सकलाना हे। अऊ बिदेसी कपड़ा के होली जलाना है।

महराज रघोत्तम किहिस - काल करंते आज कर आज करंते अब। पल में परलय होयगा, तब होली जलेगा कब। कबित्त ल सुनके सब हांसत - गोठियावत निकलिन कपड़ा मांगे बर।

घर-घर दल बनाके सब जांय अऊ काहंय - छेरिक छेरा, घर के बिदेसी कपड़ा ल हेरी क हेरा। घर के अंगना बटोरत रहय बिंदाबाई। हाथ के काम ल छोर के आगे दम्म ले। किहिस - अई, छेरछेरा पुन्नी तो कब के नाहक गे बाबू हो, ये का नवा उदिम करत हव? ठट्ठा करथव का?

रघोत्तम महराज सब बात ल बतइस। तव बिंदा बाई लानिस एक लुगरा अऊ एक ठन अंगरखा। मांगत जांचत गांव भर म किंजर के सब झन जुरियाइन अउ पीपर के पेड़ के तरी म सकलाके किहिन - बोले, महातमा गांधी के जय। बोलो भारत माता के जय। जय-जयकार थमिस त बिसाहू मंडल रोसियागे। लगाय लगिस नारा -

बोलव वीर नारायण सिंग के जय
बोलो सुन्दर लाल महराज के जय
बोलो ठाकुर प्यारेलाल के जय
बोलो रविसंकर सुकुल के जय
बैरिस्टर छेदीलाल के जय
बोलो डॉक्टर खूबचंद बघेल के जय
जयकारा सुनके बड़े दाऊ बिसनू किहिस - वाह मंडल कतेकझन सियानमन के नांव तंय जानत हस। धन्न हे हमर गांव लीमतुलसी जिहां बिसाहू मंडल हे। गांधी बबा के चेला।

बिसाहू मंडल किहिस- अइसन नोहय दाऊ, मैं आंव गाड़ी वान, असल गांधीवादी हमर मितान मंडल कहाथे भई। सिरतोन आय। सदा दिन गांधी बबा के सब कारबार म जात-आवत रथे। बिसाहू बतइस के मंडल ह रइपुर निकलगे। उहां नेता मन अवइया हें। ओकर संग महूं आत जात रथंव। जादा तो नहीं रे भाई हो, जा परेंव महूं दू चार जगा। तब परछो पायेंव। कंडेल गांव गेन। आवत जात सबो किस्सा ल सुनेंव। बैला गाड़ी में हांकथंव, घनाराम मंडल किस्सा फअकारथे। मोर सांही मुरूख मन्से घलो गंगा नहा लेथे संगी संगवारी के परताप ले सुन्दरलाल महराज, छेदीलाल जी बैरिस्टर, ठाकुर प्यारेलाल सिंग, डॉ. खुबचंद बघेल,रविसंकर महराज सब के नांव सुनेंव त जय बोला पारेंव भई। सब झन बिसाहू के बात सुनके संहरइन। बिसाहू हे तो कुन किसान फेर सपना गजब बड़ देखथे। देस के अजादी के सपना। वो हा सोचथे, देस अजाद होही त गरीब किसान के बेटा साहेब सुभा बनहीं। राज चलांही अपन देस म अपन राज रिही। गांव के भाग जागही। छाती तान के चलबो।

सब झन अपन घर जाय ल धरिन। महराजी पटेल किहिस - एक ठन गीत महूं सुना पारतेंव ग।

बिसाहू किहिस - सुना न जी रट्ठा के सुना
महराजी खंजेरी बजा बजा के गइस -
जय हो गांधी जय हो तोर,
जग म होवय तोरे सोर। जय गंगान।
धन्न धन्न भारत के भाग
अवतारे गांधी भगवान। जय गंगान।
गीत सुन के सब झन किहिन तथे बिसाहू मंडल किहिस जी गांधी उद्गरे हे। मनुख तन लेके भगवान आय हे। रघोत्तम महराज घर डाहर जात जात किहिस - बाबू रे, गीता म भगवान दे हे बचन-यदा यदा ही धर्मस्य.......माने के जब जब धरम उपर अपजस आय उस करही, गरीब गुरबा, गौ अउ बाम्हन के ऊपर आही संकट तब मै आहूं धरती म। परगट होहूं। गांधी के रूप म आये हे भगवान हा।

अंकलहा ल महराज के सबो बात हा नीक लागिस फेर बाम्हन उपर संकट बाला बात नई सुहइस। किहिस के बाम्हने मन मनखे ये, हमन नोहन? भगवान हमरो बर मया करत होही महराज?

रघोत्तम महराज बताइस - बात अइसे ये अंकलहा, गरंथ लिखइया कोन? बाम्हन। त अंधरा बांटे रेवड़ी, आप आप ल देय ताय जी। गरंथ म हे तेला केहेंव। पुरान उपनिसद हमर पुरख मन लिखिन जी हम तो भइया - मनखे मनखे ला मान, सगा भाई के समान, गुरू बाबा घासीदास के ये दे बात ल गुनथन। जात पात सब बेकार। इही सब जात-पात के बिसकुटक के मारे तो हमर ताकत कम होवत गीस। बात तंय बने करथस अंकलहा। रात होगे हे। घर जा बाबू। बिहनिया झटकुन उठहु। जागत जागत सुतहू।

भरूआ काट के बसे रिहिन हमर पुरखा मन लीमतुलसी गांव म अंकलहा किहिस बिसाहू ल। भला बिसाहू काबर चुप रितिस। उहू फटकारिस, बात अइसन ये अंकलहा, ये हमर छत्तीसगढ़ महतारी के महत्तम गजब हे। किथे नहीं, बइठन दे त पिसन दे तौन हाल ताय। बैइठे पइन तौन पिसे ल धर लिन। कोनो आगू अइन कोनो पीछू। हमरो पुरखा मन अइसने होहीं अंकलहा। भरूआ काट के सबो बसे हे। अंकलहा असकटागे। बिसाहू संग बात म भला अंकलहा कइसे जीतय। बात ल बिगड़त देख के अंकलहा किहिस , - ‘‘बिसाहू मंडल, काली जऊन चेंदरी मन के होली जलायेव तेकर का मतलब हे, गम नई पायेंव।’’

बिसाहू किहिस - घनाराम मंडल आगे हे रइपुर ले। ले चल फेर उन्हें चलीं उही बताही भई।
दूनों झन ल आवत देखिस त घनाराम मंडल अपन बहू ल हूंत करा के किहिस - ‘‘बहू, चाहा मड़ा दे। तीन गिलास उतारबे।’’

घनाराम मंडल किहिस - ‘‘बइठव जी। तुंहला बताई चाह के किस्सा। बात अइसन के बिसाहू , चाहा ल हम नई धरेन। हमला चाहा ल धर लिस। दुकान वाला मन आवंय गांव म कटेली केटली बनावंय चाह अऊ फोकट म पियावंय। हफता पन्दरही फोकट में पी पारेन। तहां का पूछना हे। चस्का लग गे।’’
कबी चाहा बर कबित्त बनायहे जी, सुनव, 

डुबु डुबु डबकत हे, चाहा के पानी।
गजब बाटुर हें, धोरूक अऊ डार दे पानी, 
सक्कर न दूध दिखय लाल लाल पानी।
होठ हर भसकत हे फूट कस चानी।
कविताला सुनके अंकलहा किहिस - नाचा म जोक्कड़ मन नवा बात किथें -
चाह भवानी दाहिनी, सम्मुख माड़े पलेट
तीन देव रच्छा करंव, पान बिड़ी सिगरेट।

दोहा सुन के घराराम मंडल गजब हांसिस। किहिस - का करबे बिन चाहा के रहे न जाय। मूड़ पिराथे। हाथ गोड़ अल्लर पर जथे। घर भर के पहली उठते साठ चहा पीथन त काम बूता धरथन। मंडलिन हा चाहा पिये बिना नाती ल सेंकय नहीं। चाहा बिना परेम धलो नई होवय। ठठ्ठा बात ल सुनके मंडलिन देखऊटी घुस्सा करके किहिस - ‘‘एकाध झन मनखे मन बुढ़ा जथें फेर गोठियाय के ढंग नई राहय।’’

मंडल मंडलिन के बात ल सुनके अऊ मंगन होगे। किहिस। देखना हे सवाद चाहा के चस्का ताय। बात में चस्का ते चाह के चस्का। चाह पीना माने अब सान के बात बनगे जी। घर में मनखे आही अऊ चाह नई पियाबो त किही दिली-ओहा चाहो बर नई पूछिस जी। याहा तरा दिन आय हे।

मंडल के बात, - बिसाहू किहिस - ‘‘तंय तो मातबर मंडल अस, चार नागर के जोतनदार। फेर जिकर इहां मुसुवा डंड पेलत हे उहू मन झपागे चाहा म। पोट-पोट भूख मरही फेर चाहा झड़काही। खसू बर तेल नहीं, घोड़सार बर दिया। यहा तरा होवत हे हाल हा। मंडल किहिस - सिरतोन ताय जी। ले चाहा पुरान छोड़व। बतावव कइसे पधारेव दूनो देवता।’’
अंकलहा किहिस - मंडल, तै गांधी बबा के चेला। काली हमन मिलके चेंदरी, पोलखा, लुगरा, अंगरखा, जऊन मिल ग तेला फूंक देन। गांधी बबा के हुकूम हावय। फेर कोनो बतइन नहीं के भभकत आगी म पानी डरइया गांधी बबा के यहा हुकूम काय ये भई। एक गाल ल कोनो मारही त दूसर ल दे दव, कहइया ह आगी काबर लगाय बर किथे। 
बिसाहू मंडल अंकलहा के बात सुनके थपड़ीपीट के हांसिस। अंकलहा किहिस - मंडल का बात ये भई, कांही अनीत कर पारेंव का?

हांस पारेंव, अंकलहा मंडल किहिस। बात अइसन ये के पहली तंय गांधी बबा के नाव नई जानत रेहे। फेर ओकर जय बोलाय बर सीखेस, अब गांधी महातमा के सिद्धांत, बिचार, पुरूगिराम, सब ल जाने के उदिम करत हस। तोर अस बर कहे गेहे पहिली जोंधरी चोर फेर सेंधफोर। फेर सुने जाने बर चाही सब बात ल। गांधी बबा बतइस जी हमन ल। आज के बात चाही सब बात ल। गांधी बबा बतइस जी हमन ल। आज के बात नोहय। अब तो देस सुतंत्र होय चाहत हे। करो या मरो, ओकर आगू कंडेल नहर के कांड, सब कथा लम्बा हे। गांधी बबा के किसिम किसिम के हुकू होइस।

छत्तीसगढ़ मा गांधी बबा पहली अइस त कंडेल कांड म। धमतरी तीर हे गांव कंडेल। उहां पंडित सुन्दर लाल अऊ ऊंकर संगवारी मन नहर पानी बर अंडियागें। राख पत त रखा पत। किसान के लाल ऑखी देख के देवता थर्रा जथे। अंगरेज मूत मारिन। गांधी बबा के आय के पहली होगे राजीनामा। फेर गांधी बबा अऊ दीन आसीरबाद। हमर छत्तीसगढ़ म पंड़ित सुन्दरलाल ल घलो गांधी केहे जाथे। काबर? के वो हा गांधी जी के रद्दा म चले के रंग ढंग ल सिखाईस रे भई। सतनामी भाई मन ल जनेऊ दीस। मंदिर म उनला परवेस करवाइस।
अभी बात ह चलते रिहिस, ओती ले आगे जेठू अउ महराजी। दूनोंझन घनाराम मंडल ला पांय, पैलगी करिन अउ कलेचुप बइठगें।

अंकलहा किहिस - मंडल का बोलन। का बतावन एक मनखे तुंहला देखथन। एक बोलिया। सच के मनइया। सब झन के देखइया। एक झन बिसून दाऊ हे। बिहनिया गांधी जी के जय बोलाथे, सांझ कन पुलुस सिपाही मन संग बइठके डल्ला उड़ाथे। अउ एक बात जरूरी हे मंडल ददा। तुंहर ले जादा बिसुन दाऊ के कदर हे गांव म। किये नहीं, सती बिचारी भूख मरे, लड़वा खाय छिनार
धन्न रे दुनिया।

मंडल किहिस - का बात ये अंकलहा? गजब जोर के धक्का खाय हस तईसे लागत हे।
‘‘खाय हंव मंडल। मै घासीदास बबा के जस गवइया अंकलहा। पंथी दल बना पारेव मंडल। मंदरहा मिलगे, टूरा मन ल सिखोवत हंव। तुंहला नाच के देखाहूं। अभी जादा नई सिखे पायन। बिसनू दाऊ के सौंजिया के मदहरा टूरा बुधारू हे। दाऊ भड़कावत हे वोला। काहत हे अंकलहा के चक्कर म झन पड़ रे बाबू। मादरे के पुरती हो जाबे। अंगरेज मन सब देखते हें। घासीदास के वचन ल झन गावव। अंगरेज धर लीही। तुमन गाहू ...
मनखे मनखे ल जान,
सगा भाई के समान।

त अंगरेज ह छोड़य नहीं। अरे मुरूख हो, गोरिया - करिया, नीच -ऊंच, धनी गरीब सब भगवान बनाये हे। तोला तुम मेट दुहू। मनखे मनखे कइसे एक हो जाही। फेर गाथव तुम ‘‘मंदिरवा म का करे जइबो, अपन घट ही के देव ल मनइबो।’’ इही सब गाना ये। मंदिर म नई जाये सकेव त घर के देव ल मनइबो।’’ इही सब गाना ये। मंदिर म नई जाये सकेव त घर के देव ल मनाथव। सुन्दरलाल महराज ह दू चार झन सतनामी ल एक दिन मंदिर में खुसेर दिस त का होगे। बाम्हन चलाकी चल दिस। न एती के होयेव न ओती के। बाबू रे, पंथी गाना बंद करो। यहा तरा हमला डेरवावत हे मंडल। अंकलहा के बात ल सुन के मंडल ल गजब रीस लागिस। मंडल किहिस - ‘‘दू ठन डोंगा म पांव धरही, तौन बोहाबे करही अंकलहा। दाऊ बिसनू के चाल हम जानत हन। तंय झन कर फिकीर। नाच अउ नचवा। गीत ल सब गा। अउ एक ठन गीत अऊ गा।’’
का गीत मंडल?

अंकलहा पूछिस। मंडल किहिस - --ये दे गीत ल सुन जी।’’
भैया पांचो पाण्डव कहिए जिनको नाम सुनाऊं
लाखे वामन राव हमारे धर्मराज को है अवतार
भीमसेन अवतारी जानो, लक्ष्मीरनारायन जिनका नाम 
डागा सह देव नाम से जाहिर,
रऊफ नकुल को है अवतार
ठाकुर अर्जुन के अवतारी योद्धो प्यारेलाल सरदार।

ये सब हम रइपुर जाथन आथन त सुनथन जी। छत्तीसगढ़ महतारी के पांडव ये येमन। गीत गावव। बाजा बजावव। बिसने सही बेईमान मन के बात ल कान झन दव। समझाय बुझाय के बाद घनाराम मंडल अपने बेटा ल हुंत करइस। सोरा बछर के सामलाल आके खड़ा होगे। मंडल किहिस सामनलाल अंकलहा कका, महराजी कका मन पांव छू के आसिर बाद ले बाबू।

समलाल दूनो झन के पांव परिस। अंकलहा किहिस - मंडल, हमर पांव परवाके तै अनीत करथस गा। हमला कोनो पांव नई परंय। जात-पात माड़े हे मंडल।
मंडल किहिस - ‘‘अंकलहा, तंय मोर भाई अस के नहीं? 
भाई आस त समेलाल के का, लाग होय?
कका तान भई अंकलहा किहिस

‘‘त कका के पांव भतीज नई परही जी। अच्छा बताय तहूं ह।’’
अभी मंडल कुछू अउ कहे पातिस तैइसने चाहा आगे।
सबो मन चाहा भड़किन। कप सासर ल अभी भुइयां म मड़ाय नई पाय रिहिन तइसने पहंचगे बिसनू दाऊ। घनाराम किहिस - ‘‘ले, कथे नहीं, नाचत रिहिन जोगी तेमा कूद परिन सन्यासी। अरे भाई, बिसनू दाऊ घलो आगे। लानव रे चाहा।’’

बिसनू दाऊ नता म मंडल ल मानय भांटो। किहिस - ‘‘भांटो, बुढ़ा गेस फेर ठठाय बर नई छोड़े।’’
घनाराम भला कहां चुप रहइया ये, उहूं तगड़ा जवाब दिस - ‘‘अइसे ये बाबू रे, ठठाही किके तो बहिनी देहच। अब काबर करलाथे।’’
अपन अस मुंह लेके रहिगे बिसनू दाऊ। सामलाल फेर चाह लेके अइस। बिसनू दाऊ किहिस - पांय लागी भांचा। कब हबरे ग।

सामलाल लजागे। चाहा देत खानी बिसनू दाऊ के नजर परगे सामलाल के जेवनी हाथ म। चाहा देत खानी बिसनू दाऊ के नजर परगे सामलाल के जेवनी हाथ म। चाहा पिये बर छोड़ दिस बिसनू। किहिस 
‘‘भांचा, यहां का लोर उपटे हे हाथ म भाई, हाथ, करियागेहे।’’
समलाल कुछू नई किहिस। घर भीतर चल दिस। मंडल किहिस ‘‘तै तो आस कंस ममा। इहां दिन भर गांधी बबा के गुन गाथस अउ रात कुन डल्ला उड़ाथस। जिंकर संग डल्ला उड़ाथस बाबू रे उही सिपाही मन मारे हे सामलाल ल।’’

का किथस भांटो? बिसकुटक झन सुनाय कर। फरी फरा बता। बिसनु किहिस।
सब्बो बइठया तन अकबकागें। घनाराम मंडल तब बतइस - ‘‘सामलाल के ममा रिथे दुरूग में। उहां वे गुरूजी हे। सामलाल ओकरे हाई स्कूल म पढ़ेबर दुरूग गे हे। नवमीं पढत हे ग। का करबे, हमर तीर तखार म तो हाई स्कूल नइये। भेजेंव रे भाई। बड़े बेटा चुन्नीलाल ह तो चौथी पढ़के घर के खेतीबारी देखत हे। तिपोय बर बहू आगे। ये दे छोटू ल पढ़ा परतेंव कहिके भेज देंव दुरूग। उहां लइका ह सुराजी मन के संगत म देस के काम करे धर लिस। पर्चा बांटय, पोस्ट आफिस के लाल डब्बा म तेजाब डारय। लइका दल के दू टूरा पकड़ा गे। सामलाल ल पकड़ के लेगिन अउ किहिन - हाथ ल खोल बेटा पा ईनाम गांधी के सिपाही बने के। सुराजी बनत हे साला ह। लइका ल तीन बेंत के सजा दे गीस। पहली एक सिपाही हाथ ल कोहनी मेर ले धरिस, दूसर ह सिलकन के कपड़ा ल पानी म बोर के हाथ में मड़इस, तीसर ह, कांख के मारिस सट ले। मोर बेटा, फूल के झेला एके बेंत म बिहूस होगे। अऊ मारिन। सजा ताय। ओकरे सेती करिया गे बिसनू।’’

बतावत बतावत आंखी म आंसू आगे मंडल के। अंकलहा किहिस - ‘‘फेर का करबे, हमी मन गद्दार हन?
बिसनूदाऊ ला लागिस जइसे अंकलहा हा ओकर मुंह म खखार के सब के आगू म थूक दिस।
घनाराम अंखियाइस अंकलहा ल।

टंकलहा चुप होगे। महराजी किहिस - ‘‘मंडल, तोर बेटा ये। सुराजी तो बनगे करही। करेजा चाही सुराजी बने बर। घर म बला के हइतारा मन संग डल्ला उड़ाना सरल हे अउ बेंत खाके गांधी बबा के काम करना अऊ जहल जाना गजब कठिन।’’
‘‘जेखर राहय लोहा के दांत, तऊन खाय ससुरार के भात’’....
फोकट नई केहे गेहे। तैं तो जस के तस हस मंडल, फेर सामलाल निकलही सुराजी। हमन तो मर-खप जाबो। सामलाल देखही देस के आजादी अऊ चमक ल।

घनाराम मंडल महराजी के बात सुनके उठ बइठिस। किहिस - ‘‘महराजी, राज करंते राजा नई रहि जाय, रूप करंते रानी। रहि जइहंय ग नाव निसानी। ले चलव भइया, हो। उठव रेंगव गजब दुरिहा जाना हे।’’ 


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