
राखी के त्योहार को रक्षाबन्धन भी कहते हैँ| राखी एक धागे की डोर है जिसको बहन भाई की कलाई पर प्रेम पूर्वक बाधती है और सदा विजयी होने का आर्शीवाद देती है| भाई बहन की रक्षा के बन्धन में डोर से लिपट जाता है| यह त्योहार बहन भाई के रिश्ते को सदा जीवित रखता है और प्रेम में बान्धे रखता है|
इस त्योहार के साथ भी कई कहानियाँ जुडी हुई हैं कि कैसे यह त्योहार मनाना शुरु हुआ| एक बार राजा इन्द्र की राक्षसों से लडाई छिड गई| लडाई कई दिनों तक होती रही| न राक्षस हारने में आते थे, न इन्द्र जीतते दिखाई देते थे| इन्द्र बडे सोच मे पडे| वह अपने गुरु वृहस्पति के पास आकर बोले ,"गुरुदेव, इन राक्षसो से मैं न जीत सकता हूँ न हार सकता हूँ | न मैं उनके सामने ठहर सकता हूँ न भाग सकता हूँ| इसलिये मैं आपसे अन्तिम बार आर्शीवाद लेने आया हूँ| अगर अबकी बार भी मैं उन्हें हरा न सका तो युद्ध में लडते लडते वहीं प्राण दे दूँगा |
छात्र : तो इन्द्र को राखी किसने बांधी ?
अध्यापक : उस समय इन्द्राणी भी पास बैठी हुई थी इन्द्र को घबराया हुआ देखकर बोली, " पतिदेव, मै ऐसा उपाय बताती हूँ जिससे इस बार आप अवश्य लडाई में जीतकर आयेगे| इसके बाद इन्द्राणी ने गायत्री मंत्र पढ़कर इन्द्र के दाहिने हाथ मे एक डोरा बाँध दिया और कहा, पतिदेव यह रक्षाबन्धन मै आपके हाथ में बाँधती हूँ| यह रक्षा का बन्धन आपके हाथ में बांधती हूँ| इस रक्षाबन्धन को पहन कर एक बार फिर युद्ध में जाये | इस बार अवश्य ही आपकी विजय होगी| इन्द्र अपनी पत्नी की बात को गाँठ बांधकर और रक्षा बन्धन को हाथ में बधवाकर चल पडा| इस बार लडाई के मैदान में इन्द्र को ऐसा लगा जैसे वह अकेला नही लड रहा इन्द्राणी भी कदम से कदम मिलाकर उसके साथ लड रही है| उसे ऍसा लगा कि रक्षाबन्धन का एक एक तार ढ़ाल बन गया है और शत्रुओं से उसकी रक्षा कर रहा है| इन्द्र जोर शोर से लडने लगा| इस बार सचमुच इन्द्र की विजय हुई | तब से लेकर रक्षाबन्धन का त्योहार चल पडा| यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिये इसे सावनी या सूलनो भी कहते है|
छात्र : इसके अतिरिक्त और भी कोई राखी की कहानी है क्या?
अध्यापक : हाँ और भी इसका महत्व हैजो कि हमारे ऋषि मुनियों ने समझा सावन का महिना ऋषि मुनि लोग गाँवों और नगरौ मे बिताते थे| वह लोगो को उपदेश देते थे| लोग गुरु मंत्र लेने के लिये यज्ञ में आते थे| ऋषि लोग सच्चाई पर चलने का अच्छे कर्म करने का उपदेश देते थे| उस बात का संकल्प करने के लिये वे भक्तो के दाये हाथ मे मौली के धागे से गाँठ और गले मे जनेऊ की गाँठ बाँध देते थे जो उन्हें जिन्दगी मे कदम कदम पर गुरु शिक्षा की याद दिलाती रहती थीकि कहीं अपना वायदा न भूलें| सच्चाई और अच्छाई की राह पर चलने का| आजकल पुरोहित लोग अपनें यजमानों को राखी बाँधते है|
छात्र : बहने कब से भाई को राखी बाँधने लगी यह कब से आरम्भ हुआ ?
अध्यापक : वास्तव मे बहन के भाई को राखी बाँधने की प्रथा राजस्थान से शुरु हुई |उनमे यह रिवाज हो गया है कि यदि किसी औरत पर कोई मुसीवत आती थी तो वह किसी वीर पुरुष को अपना भाई कहकर राखी भेज दिया करती थौ | राखी का मत होता था बहिन की रक्षा का भार उठाना | कहते हैं कि एक बार रानी कर्णवती ने बादशाह हुमायूं को इसी उद्देश्य से राखी भेजी थी | वह मुसलमान था फिर भी राखी का न्योता पाकर वह अपनी मुँह बाली बहिन की रक्षा के लिये चल पडा था | तब से बहिनें अपने भाइयों के हाथों में राखी बाधने लगी है|
आजकल राखौ के दिन सुन्दर सुन्दर राखियाँ बनाई जाती हैं| घरों में मीठे भोजन और पकवान बनाये जाते है| बहिनें भाइयों के राखी बाँधती हैं| रक्षाबन्धन का त्योहार बहन भाइयों के रिश्ते को मजबूत करता है| राखी के त्योहार का अर्थ बहुत गहरा है| यह एक दूसरे के प्रति प्यार, विश्चास, आशा. बलिदान , को जाग्रत करता है|ऍसी भावनाओ को पैदा करता है कि बहन अपने भाई के लिये सदा मंगल कामना करती है व भाई बहिन के लिये रक्षा के वायदे करता है| बहिन तरह तरह की मिठाइयाँ प्यार से बटोर कर भाई को केसर का टीका लगाकर राखी को प्यार के डोरो को भाई की कलाई पर बांधती है और आर्शीवाद देती है भाई बहिन को आर्शीवाद देता है व भेंट मे कुछ उपहार देता है| तरह तरह के पकवान बनाये जाते है| सब खुशी से खाते पीते है |यह प्यार का त्योहार है जो रिश्ते नाते जोडता है|
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