साहित्य परम्परा को डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने निम्न भागों में विभाजित किया
गाथा युग - 1000 से 1500 ई. तक
भक्ति युग - 1500 से 1900 ई. तक
आधुनिक युग - 1900 से अब तक

गाथा युग
· इतिहास की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी का गाथा युग स्वर्ण युग कहा जाता है।
· रामायण, महाभारत में छत्तीसगढ़ का विषेष स्थान है।
· बौद्ध दार्षनिक नागार्जुन ने आरम्भ सूत्र यही खोजे थे।
· 875 ई. चेदिराज कोकल्ल के पुत्र कलिगंगराज ने षुरूआत किया
· कलिंग राज के पुत्र रत्नेष ने ही रतनपुर की स्थापना किया।
· 1000 ई. से 1500 ई. तक छत्तीसगढ़ के अनेकानेक गाथाओं की रचना हुई जिसने प्रेम और बीरता का अपूर्ण विन्यास हुआ।
· गाथाओं पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से होता था।
· गाथाओं का विवेचन प्रेम प्रधान, पौराणिक और धार्मिक रूप में किया जाता है।
भक्ति युग
रतनपुर के राजा वाहरेन्द्र के काल में 1536 ई. से मुस्लिमों के आक्रमण से माना जाता है।
भक्तियुग के मुख्यतः तीन धारा में विभक्त है -
गाथा परम्परा से विकसित गाथाओं की है।
धार्मिक एवं सामाजिक गीतो की है।
रचनाओं से जिसमें अनेकानेक भावनाएं व्यक्त किया।
कल्याण साय की प्रमुख गाथा - फुलकुंवर, देवीगाथा
गोपल्ला गति, रायसिंध के पवारा, ढोलामारू, और नगेसर कइना प्रमुख लघु गाथए है।
लोखिक चंदा, सरबन गीत, वोधरू गीत
आधुनिक युग
· छत्तीसगढ़ का आधुनिक युग साहित्य के विभिन्न क्रम गद्य, पद्य का विकास हुआ।
· छत्तीसगढ़ साहित्य का विकास
· पण्डित सुन्दर लाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ी काव्य को स्थापित किया एवं लघुखण्ड की सृजन कर प्रवन्ध काव्य लिखने की परम्परा को विकसित किया।
· पण्डित सुन्दरलाल शर्मा की ‘‘दानलीला‘‘ ने हिन्दी भाषा-भाषियों एवं साहित्यकारों समीक्ष के मध्य अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त किया।
· प. लोचन प्रसाद पाण्डेय की छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन के संस्थापक माने जाते है।
· पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय की 1918 में ‘‘छत्तीसगढ़ी कविता‘‘ को प्रकाषित हुआ।
· पं. पद्मश्री प. मुकुटधर पाण्डेय 1918 में काव्यसंग्रह ‘‘झरना‘‘ छायावादी कविताओं का प्रथम संग्रह था।
· विमल कुमार पाठक ने ‘‘गवई के गीत‘ का विषेष योगदान दिया है।
· श्री हरि ठाकुर ‘‘छत्तीसगढ़ गीत अउ कविता‘‘ तथा ‘‘जय छत्तीसगढ़ी‘‘ काव्य संग्रह है।
· नारायण लालपरमार छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषा दोनों शाषाओं में लिखा है। छत्तीसगढ़ी में श्रृंगारिक गीतों की रचना के साथ युगबोध सुगठित नवीन कविताओं का सृजन किया।
· श्री रघुवीर अग्रवाल पथिक‘‘ के काव्य का प्रमुख विषय प्रकृति चित्रण एवं प्रेम है ‘‘जले खत से दीप‘‘ हिन्दी छत्तीसगढ़ काव्य संकलन है।
· श्री विद्याभूषण मिश्र कवि होने के साथ गीतकार भी है। ‘‘छत्तीसगढ़ गीतमाला‘‘ सुघ्घरगीत‘‘ में सान्ध्य वर्णन किया है।
· टिकेन्द्र टिकरिहा वस्तुतः सामाजिक अत्थान को वाणी देने वाले कवि है जो कर्म और साधना के रूप मे छत्तीसगढ़ साहित्य को समृद्ध किये जो लगभग 100 नाटक प्रकासित हो चुका है। जिसमें मुख्यतः ‘‘साहूकार ले छुटकारा‘‘ गवइहा सौत के डर, नवा बिहान, देवार डेरा है।
· छत्तीसगढ़ का आधुनिक युग साहित्य के विभिन्न क्रम गद्य, पद्य का विकास हुआ।
· छत्तीसगढ़ साहित्य का विकास
· पण्डित सुन्दर लाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ी काव्य को स्थापित किया एवं लघुखण्ड की सृजन कर प्रवन्ध काव्य लिखने की परम्परा को विकसित किया।
· पण्डित सुन्दरलाल शर्मा की ‘‘दानलीला‘‘ ने हिन्दी भाषा-भाषियों एवं साहित्यकारों समीक्ष के मध्य अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त किया।
· प. लोचन प्रसाद पाण्डेय की छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन के संस्थापक माने जाते है।
· पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय की 1918 में ‘‘छत्तीसगढ़ी कविता‘‘ को प्रकाषित हुआ।
· पं. पद्मश्री प. मुकुटधर पाण्डेय 1918 में काव्यसंग्रह ‘‘झरना‘‘ छायावादी कविताओं का प्रथम संग्रह था।
· विमल कुमार पाठक ने ‘‘गवई के गीत‘ का विषेष योगदान दिया है।
· श्री हरि ठाकुर ‘‘छत्तीसगढ़ गीत अउ कविता‘‘ तथा ‘‘जय छत्तीसगढ़ी‘‘ काव्य संग्रह है।
· नारायण लालपरमार छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषा दोनों शाषाओं में लिखा है। छत्तीसगढ़ी में श्रृंगारिक गीतों की रचना के साथ युगबोध सुगठित नवीन कविताओं का सृजन किया।
· श्री रघुवीर अग्रवाल पथिक‘‘ के काव्य का प्रमुख विषय प्रकृति चित्रण एवं प्रेम है ‘‘जले खत से दीप‘‘ हिन्दी छत्तीसगढ़ काव्य संकलन है।
· श्री विद्याभूषण मिश्र कवि होने के साथ गीतकार भी है। ‘‘छत्तीसगढ़ गीतमाला‘‘ सुघ्घरगीत‘‘ में सान्ध्य वर्णन किया है।
· टिकेन्द्र टिकरिहा वस्तुतः सामाजिक अत्थान को वाणी देने वाले कवि है जो कर्म और साधना के रूप मे छत्तीसगढ़ साहित्य को समृद्ध किये जो लगभग 100 नाटक प्रकासित हो चुका है। जिसमें मुख्यतः ‘‘साहूकार ले छुटकारा‘‘ गवइहा सौत के डर, नवा बिहान, देवार डेरा है।
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