हमरे यह जीवन या विधा ते (Hamare Yah Jivan Ya Vidha te)
कबहूं सतसंग में रंग रहै, कबहूॅ उर आनंद ते बिहरें।
कबहूं कवि सुन्दर काव्य करै, कबहूॅ उपदेशन को उचरै।।
कबहूं पर के उपकारन में, निवछावर ये तन प्राण करै।
हमरे यह जीवन या विधा ते, कबधौ करूणाकर पार करें।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for Comment..
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for Comment..