एक गांव मां एक झन बांभन रहिस। वोखर बेटा-बेटी नइ रहिस। रात-दिन ओ हर गीता पढ़ै अउ माला जपै। एक दिन रात कन सपना देखिस के गीता अउ माला हर ओखर बेटा आय। ओहर इही ला बेटा मान के ओखर बिहाव एक सुंदर कन्या संग कर के बहू अपन घर ले आनिस। सपना के ये बात ला ओहर अपन घर वाली ल बताइस। बांभन-बांभनी सुंता हो के सपना ला सिरतोन मान लीन। बांभन हर एक हांत मां पनही अउ दूसर हात मां छाता अउ गीता-माला ल झोरा मां धर के बहू खोजे बर निकल गिस।
रेंगत-रेंगत जब थक जाए, तब कोनों झाड़ के तरी बैठ के सुरता लय अउ ओतका बेरा छाता ओढ़ लय। जब कभू नदिया - नरवा नांहके ला होय त पनही ला पहिर लय, नइ तो ओला हांत मां रे-धरे रेंगय। बांभन के संग मा रेंगइया मन बांभन के अइसन उलटा चरितर ला देख के कउवा गे अउ कांहय के ये कइसना मुरुख आय, जउन भूंया मां रेंगथे त पनही ला पाहिर लेथे। घाम मा रेंगथे त छाता ला धरे रइथे अउ छैइहां मा बइठथे त छाता ओढ़ थे। तब दूसर संगवारी कइथे, हिं ग भाई ये बांभन ह मुरुख नद्द आय ये ह चतुरा है काबर के जब पानी मां रेंगथे तब पनही ला येखर सेती पहिरथे के पानी के रहवइया सांप मंगरा मन तो दिखै नाहिं, कहूं चाब चूबू झन दंय, कइ के पहिर लेथे अउ भूंया ल देख-देख रेंग जथे। ओइसन हे जब कोनो झाड़ तरी बइठथे त छाता ला येखर सेती ओढ़ लेथे कि कहूं चिरइ चिरगुन मन ओखर ऊपर हगै-मूतैं झन। जउन ओला मूरुख काहत रहिस हावय तउन कहिस हां ग त तो बांभन ह चतुरा हे।
रस्ता मां एक ठन गांव अइस, तिहां अमा के बांभन कुंवारी क.या बिहाव लइक पूछिस। ओ गांव के एक झन बांभन ह ओला अपन घर लेगे। सगा ल बने सुग्घर चतुरा नोनी अपन बाबू बर खोजत हौं। गांव के बांभन कहिस फेर ये तो बता ग के लइका ह कइसनहा हे अउ का बूता करथे। त ओला बता देइस के मोर लइका ह पढ़े बर आन देस गे हे। टूरी ला देख के पसंद करके
ओखर बिहाव अपन गीता-माला संग कर देए बर गोठियाइस। बांभन ह अपन बेटी के भांवर गीता-माला संग कर देए बर राजी होगे त उपरोहित ला बलवा क सुग्घर लगिन निकलवा के गीता-माला संग नोनी के बिहाव पर दिस।
बहू बिदा कर के बांभन अपन घर लहुट अइस। बांभनी हर गोरी नारी गुनवंती बहु पा के बड़ खुस होगे। बने हंसी खुसी मां कुछ दिन बीत गिस। बांभनी हर अपन बहू ला घर के सब काम-बुता बता-चेता के सिखा दिस अउ बता दिस के उपर पटऊंहा के कुरिया ला झन खोलबें। एक दिन के
बात ए, घर मां सिपचाय बर आगी नइ रहिस, त परोसी घर आगी मांगे बर बहू ह चल दिस। उहां ओला बता देइन के ये बांभन के तो कोनो बेटा-बेटी नइ आय, तोला ठग के बिहाव कराके ले आने हाबय। ये मन ला बूढ़त काल मां तोर असन नौकरानी मिल गे हे। ऐसनहा बात ला सुन के बिचारी ला बड़ दुख होइस अउ रोए लगिस। रोत-रोत उपर चढ़ गे अउ जउन कुरिया ला खोले
बर सास ह बरजे रहिस, तउन ला खोल डारिस। दुवारी ला खोल थे त का देखथे के भगवान सत्य नारायण स्वामी ह साक्षात बइठे हे। भगवान के पांव मां गिर के ओ हा रोए लागिस। भगवान ह खुस होगे कहिस रो झन, जा मैं ह तोर आदमी बन के तोला मिलहूं। आज जब पूरा के बेरा होही त मोर पहिरे बर एक ठन धोतियां मांगवे। जब हार थक के बांभन ह मोला सुमरही त मैंह आ जाहूं।
जब पूजा के बेरा होइस, तब बहू ह अपन ससुर ल कइथे, उनखर पहिरे बर नवा धोती लावौ अउ उन ला बलावौ, संगे पूजा करबो। ससुर ह नवा धोती त ला देइस, फेर बेटा कहां ले लानय। ओ हर संसो मा पर गे। हार के रो-रो के भगवान ला कइथे, मोर लाज तहीं हा बचा भगवान। बांभन के पुकार ला सुन के भगवान ह बांभन के बेटा बन के आ जथे। उपर के कुरिया के दुवारी ह अपने अपन खुल जथे, भगवान ह उतर के आ जथे, अउ कइथे मैं ह तोर बेटा बन के आ गेयेंव, मैं हर तोर पूजा पाठ ले खुस हो के तोला सपना देय रहेंव। जम्मों झन बड़ खुस होगे भगवान के पूजा करथे अउ हंसी-खुसी म रेहे लगथे।